सावित्रीबाई फुले – हिंदी निबंध । Savitribai Phule Nibandh

प्रस्तुत लेख सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule Essay In Hindi) इनके जीवन पर आधारित एक हिंदी निबंध है। यह निबंध सावित्रीबाई फुले के जीवन कार्यों के बारे में पूरी जानकारी देता है।

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले निबंध हिंदी में | Savitribai Phule Hindi Nibandh |

महात्मा ज्योतिराव फुले की पत्नी, प्रथम महिला शिक्षक, ज्ञानज्योती सावित्रीबाई फुले ने भारतीय महिलाओं को शिक्षा की मुख्यधारा में लाकर नारी शक्ति को समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया। सावित्रीबाई ने महात्मा ज्योतिराव फुले के सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। नौ साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी ज्योतिराव फुले से हो गई। ज्योतिराव स्वयं शिक्षित थे और सावित्रीबाई को भी पढ़ाते थे।

ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई ने जाति, परंपरा और निरक्षरता के कहर को सहा था। इसके लिए उन्होंने समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए आजीवन समाज सेवा का संकल्प लिया।

यह जानते हुए कि अगर हम मानवता में सुधार लाने के लिए रीति-रिवाजों और रूढ़ियों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शिक्षा ही एकमेव विकल्प है, महात्मा फुले ने 1 जनवरी, 1848 को पुणे के बुधवार पेठ में लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया। वहां सावित्रीबाई ने एक शिक्षक के रूप में काम किया।

साल 1848 से 1852 तक उन्होंने कुल 18 स्कूलों की स्थापना की। उनका स्कूल सरकार के पास पंजीकृत था। उस समय 12 फरवरी 1852 को महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले को मेजर कैंडी द्वारा सम्मानित किया गया था। इसने स्कूलों को सरकारी अनुदान देने की भी घोषणा की गई थी।

उन्होंने सन 1863 में शिशुहत्या की रोकथाम के लिए एक प्रसूति अस्पताल की शुरुआत की। उन दिनों केशवपन के खिलाफ मजदूर नेता नारायण लोखंडे ने धरना दिया। उन्हें सावित्रीबाई का समर्थन और प्रेरणा मिली।

एक विधवा मां के घर जन्मे, यशवंत को सावित्रीबाई ने गोद लिया था जिन्होंने उन्हें शिक्षित किया और उसे डॉक्टर बनाया। जुलाई 1887 में, ज्योतिराव को लकवा हो गया। सावित्रीबाई ने उनकी बीमारी के दौरान उनकी सेवा की। लंबी बीमारी के बाद 28 नवंबर, 1890 को ज्योतिराव का निधन हो गया।

प्लेग ने 1896-97 के बीच पुणे क्षेत्र में दस्तक दी थी। कई लोग इस जानलेवा बीमारी से मर रहे थे। इस समस्या को समझते हुए सावित्रीबाई ने पुणे के पास प्लेग पीड़ितों के लिए एक अस्पताल शुरू किया। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए सावित्रीबाई को भी प्लेग हो गया।

जीवन भर अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली सावित्रीबाई प्लेग से लड़ने में विफल रहीं और 10 मार्च, 1897 को 66 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। भारतीय नारी मुक्ति और नारी शिक्षा की अग्रदूत ज्ञानज्योति सावित्रीबाई फुले को सभी देशवासियों की ओर से शत शत प्रणाम।

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